रायपुर- मवेशी मालिकों के लिए खुशखबरी। अब एक बेहद सरल विधि की मदद से वे अपने मवेशियों को पूरे साल हरा और पौष्टिक चारा उपलब्ध करवा सकेंगे। साइलेज नाम है उस विधि का जिसके जरिए हरा चारा का. भंडारण सुनिश्चित किया जा सकेगा यही भंडार सूखे दिनों में चारा की चिंता दूर करेगा।

बढ़ते गोधन, आती शासकीय योजनाएं और इसे अपनाते मवेशी पालकों की हमेशा से चिंता रही है हरा चारा की आसान उपलब्धता। खासकर गर्मी के मौसम में यह समस्या सबसे ज्यादा देखने में आ रही है जब हरा चारा के लिए मवेशियों और पालकों को लंबी दूरी तय करते देखा जाता है। ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए वरदान बनकर आया है “साइलेज”। इसकी मदद से गर्मी के दिनों में भी हरा चारा हासिल किया जा सकेगा।

क्या है साइलेज
ज्वार, मक्का, नेपियर और बरसीम घास जैसे पौष्टिक पशु आहार को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर नमक व सुझाए गए पोषक तत्वों के मिश्रण का नाम है साइलेज। सही मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व और सही कार्बोहाइड्रेट के लिए जई, लूटसन, लोबिया, रिजका, लेगुम्स, जवी, बाजरा, गिन्नी व अंजन की गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए इसकी कटाई करे। ध्यान रखें कि नमी की मात्रा 60 से 65% से ज्यादा ना आने पाए।

ऐसे करें गुणवत्ता की जांच
जितने भी प्रकार के घास का मिश्रण बनाया गया है यदि उसका रंग हल्का हरा, हल्का सुनहरा, और हल्का भूरा रंग का आ रहा है याने यह उत्तम साइलेज बन गया है। रंग से पहचान की जा सकती है साइलेज की गुणवत्ता की।

साइलेज बनाने यह जरूरी
साइलेज बनाने के लिए साइलोपीट का निर्माण करना होगा। 8 फीट की गहराई और 4 फीट चौड़ाई वाला गड्ढा बनाना होगा। बारिश का पानी ठहर ना पाए इसके लिए निकास द्वार जरूर बनवाएं। चारों तरफ से दीवार बनाकर पहले से तैयार साइलेज का मिश्रण इसमें डालकर ढक दें। तीन माह बाद यह गड्ढा खोलें। अब तैयार है साइलेज के रूप में उत्तम और पौष्टिक हरा चारा।

“साइलेज एक उत्तम पशु आहार है। इसे भंडारण करके गर्मी के दिनों में हरा चारा के रूप में दिए जाने से दुग्ध उत्पादन की मात्रा बढ़ाने में मदद मिलती है।”
डॉ. बी के गोयल,
प्रोफेसर एंड हेड, कॉलेज ऑफ़ डेयरी साइंस एंड फूड टेक्नोलॉजी, रायपुर

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