भाटापारा- करोड़ नहीं। लाख नहीं। हजार भी नहीं । महज कुछ सैकड़ा का एक कारोबार भी कोरोना का शिकार हो चुका है। साल में 1 दिन, नहीं कुछ घंटे का यह कारोबार उस सोन पत्ती का है जिस पर कोरोना की काली छाया फैल चुकी है। इसलिए क्योंकि इस बार विजयादशमी का पर्व सीमित संख्या की मौजूदगी में मनाए जाने की गाईडलाइन जारी हो चुकी है। इसलिए यह कारोबार पूरी तरह शून्य पर जा चुका है।

कचनार नाम है उस पेड़ का जिस की पत्तियों का अपना पौराणिक महत्व है। यह महत्व भी केवल 1 दिन का होता है। वह दिन है विजयादशमी। इस दिन इसकी पत्तियां रावण दहन के बाद बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में एक दूसरे को दी जाती है। इन पत्तियों को सोन पत्ती के नाम से जाना जाता है। इस बार यह पूरी तरह जमीन पर आ चुकी है क्योंकि रावण दहन तो होगा लेकिन किसी भी प्रकार के स्टाल या दुकान और मेला जैसा माहौल नहीं रहेगा। 1 दिन के इस पर्व पर होने वाले कारोबार पर पूरी तरह बंदिश लगाई जा चुकी है। इसलिए इस बरस अंचल के नौ गांव से शहर पहुंचकर सोन पत्ती बेचने वाले नहीं बेच पाएंगे। यदि आएंगे भी तो खरीदने वाला कौन होगा? जैसे सवालों का उठना स्वाभाविक है।

यहां से आती है सोन पत्तियां
शहर में मनाया जाने वाला विजयादशमी का पर्व हमेशा से अंचल में लोकप्रिय रहा है। ब्लॉक के हर गांव से बड़ी संख्या में इसे देखने और मनाने लोग आते हैं लेकिन इस बार इस पर पूरी तरह रोक लग चुकी है। स्टॉल संचालक तो फिर भी पूरे साल रोजगार जुटा लेते हैं लेकिन ग्राम माचाभाट, टिकुलिया, ढाबाडीह, टोनाटार, गाड़ाडीह, बुचीपार, दावनबोड़, टेहका और ग्राम मोहभट्ठा के कचनार के पेड़ों की पत्तियां पेड़ों पर ही लगी रह जाएंगी।

2 घंटे की सोन पत्ती
नौ गांव से आने वाली सोन पत्ती बेचने के कारोबार की अवधि साल में केवल एक दिन नहीं महज 2 घंटे की मानी जाती है। करोड़, लाख या हजार नहीं महज कुछ सैकड़ा की बिक्री वाला यह क्षेत्र इस बार इस दो घंटे की मेहनत के बाद मिलने वाली रकम से पूरी तरह बाहर हो चुका है। फिर भी उम्मीद लगाए हुए हैं कि बीते साल की तरह तो नहीं, कुछ तो हासिल हो जाएगा। इसलिए इंतजार है उस दिन का जब शहर में इसे बाजार क्षेत्र में बेचने की अनुमति मिलेगी। अब यहां कब मिलेगी, जैसे सवाल के जवाब जिम्मेदार ही दे पाएंगे।

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