बिलासपुर- वे रेलयात्री जो मासिक टिकट की सुविधा से माह भर की रोजी-रोटी का इंतजाम करते थे। ऐसे लोग जो राजधानी और न्यायधानी की दुकानों में छोटी नौकरी करके मिलने वाले तनख्वाह के सहारे परिवार का भरण-पोषण करते थे। ऐसे राजमिस्त्री जो बड़े प्रोजेक्ट के छोटे हिस्से होते थे। इन सबके हाथ से नौकरी छूट चुकी है।
कोरोना कॉल में रेल सेवाएं बंद होने के 10 माह पूरे हुए। 11 वें महीने में प्रवेश कर चुकी बंद रेल सेवा पटरी पर तो लौटने लगी है लेकिन बंदिशों और शर्तों के बाद ही रेल यात्रा की अनुमति जैसी व्यवस्था से रेल यात्रियों का एक ऐसा बड़ा वर्ग बेहद हताश हो चुका है जो मासिक टिकट की सुविधा के जरिए छोटी-मोटी नौकरियां करने पड़ोसी शहरों को जाया करते थे। यह नौकरियां अब इनके हाथों से छूट चुकी हैं। अब तलाश है अपने ही शहर की ऐसी संस्थानों की जो नौकरियां दे सकें लेकिन ये भी खाली हाथ लौटा रहीं हैं।
इनके हाथ से छूटी नौकरी
राजधानी और न्यायधानी। प्रदेश के ऐसे शहर जहां छोटी नौकरियों की संख्या और भरपूर अवसर हैं। इन के दम पर पड़ोसी शहरों के राजमिस्त्री, वेल्डर व दुकानों में काउंटर संभालने वाले मध्य और निम्न आय वर्ग के यात्री इन दोनों शहरों के लिए आना-जाना किया करते थे। ये सब अब नौकरी से बाहर किए जा चुके हैं। रेल सेवाएं भले ही पटरी पर लौटने लगी हैं लेकिन इस वर्ग का जीवन पूरी तरह पटरी से उतर चुका है क्योंकि आरक्षण पर यात्रा की अनुमति, लोकल और पैसेंजर ट्रेनों के बंद परिचालन को लेकर चुप्पी के बाद सहारा देने वाले हाथ भी दूर हो चुके हैं।
कभी ट्रेन तो कभी रोड
बड़ी और मंझोली कंपनियों के उत्पादन की बिक्री बढ़ाने का काम करने वाले सेल्स प्रमोटर के सामने नौकरी बचाकर रखना सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। यह वर्ग कभी आरक्षण पर रेल यात्रा कर रहा है तो कभी एक दूसरे के सहयोग से सड़क मार्ग से बाइक पर नौकरी बचाने में लगा हुआ है लेकिन अब ऐसी दोनों यात्रा बेहद महंगी पड़ रही है। माह के अंत में हाथ में आ रही तनख्वाह का आधा हिस्सा आने-जाने में खत्म हो जा रहा है। ऐसे में नौकरी और परिवार के बीच व्यवस्था बनाए रखना मुसीबत ही बढ़ा रही है।
ये भी हुए हताश
सरकारी नौकरियां करने वाला वर्ग भी अब बेहद हताश हो चुका है। घर से दूर कार्यस्थल तक पहुंचने में होने वाले खर्च से बचने के लिए यह वर्ग मुख्यालय में भारी किराए पर घर लेकर किसी तरह नौकरी को बचाकर तो रखा हुआ है लेकिन बढ़ चुका आर्थिक खर्च मनोबल तोड़ चुका है। रायगढ़ से लेकर राजनांदगांव तक के बीच के छोटे-छोटे स्टेशनों से ट्रेनों में यात्रा करके नौकरी करने वाला यह वर्ग अब सवाल उठा रहा है कि मासिक टिकट की सुविधा आखिर क्यों नहीं चालू की जा रही हैं?
5 से 7 हजार मासिक टिकट हर माह
रायगढ़ से राजनांदगांव के बीच चलने वाली लोकल, पैसेंजर, एक्सप्रेस तथा सुपरफास्ट एक्सप्रेस के लिए सामान्य और सुपर फास्ट मासिक टिकट की सुविधा लेकर नौकरियों पर जाने वाले लगभग 5 से 7 हजार यात्री पूरी तरह बेसहारा हो चले हैं। सरकारी नौकरियां करने वाले तो किसी तरह परिवार की गाड़ी खींच रहे हैं लेकिन प्राइवेट नौकरियों और दैनिक रोजी के सहारे जीवन चलाने वाले यात्रियों के हाथ से नौकरियां छूट चुकी है। ऐसे लोग अब लोकल और पैसेंजर ट्रेनों के फिर से परिचालन का इंतजार कर रहे हैं।