रायपुर- पोहा उत्पादक राज्य के रूप में पहचान बना चुकी छत्तीसगढ़ की पोहा मिलें अनलॉक होती नजर आने लगी हैं। देश स्तर पर अपनी गुणवत्ता की धाक जमा चुका अपना पोहा अब फिर से छूटा बाजार हाथों में लाने लगा है। इससे मांग में प्रदेश स्तर पर 10 फ़ीसदी की बढ़ोतरी आ चुकी है। बंद होती मिलों की बढ़ती संख्या पर ब्रेक लगता दिखाई दे रहा है तो, कम कर रहे काम के घंटे फिर से बढ़ाए जाने की कोशिशों का किया जाना भी चालू हो चुका है।
संकट होने लगा दूर। बीते 10 माह से कोरोना, फिर प्रतिस्पर्धी राज्यों की बढ़त से प्रदेश की पोहा मिलों में उत्पादन के घटाए जाने का क्रम जारी था और जारी था काम के घंटे कम करने का। संकट तब और गहराया जब अच्छी-खासी चल रहीं पोहा मिलों में तालाबंदी जैसी स्थितियां बन गई। उपाय दूसरा कोई और था नहीं, इसलिए चुपचाप स्वीकार कर लिया गया। तेजी से अनलॉक होते बाजार में एक बार फिर से मांग निकलने लगी है और अस्तित्व पर मंडराता खतरा आहिस्ता-आहिस्ता दूर होता जा रहा है।

इसलिए हो रहा सुधार
प्रदेश की पोहा मिलें अपने प्रतिस्पर्धी राज्य पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात से मुकाबला करने के लिए अपने उपभोक्ता राज्यों को अब जिस कीमत पर आपूर्ति करने लगीं हैं उसने हाथ से छूटते बाजार को थामने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लोकल मांग और क्रय शक्ति को समझकर भाव 2700 से 3000 रुपए क्विंटल पर स्थिर रखा है। इससे प्रदेश का बाजार भी राहत का सांस ले रहा है।

क्वालिटी पर बढ़ाया ध्यान
प्रदेश की पोहा मिलों ने पोहा क्वालिटी के लिए मंडियों में आ रहे धान की खरीदी अब ज्यादा सतर्कता के साथ करना चालू कर दिया है। इससे पोहा की क्वालिटी में पहले से और भी ज्यादा सुधार आने लगा है। यह वजह भी गिरते बाजार को थामने में मददगार बना है। एक और राहत महामाया उत्पादक किसान को मिल रही हैं कि क्वालिटी पर ध्यान से हो रही खरीदी के बाद कीमत भी किसानों को संतोष दे रही है। याने पोहा उद्योग पटरी पर आने लगा है।

सुधर रही सेहत
देश स्तर पर प्रतिस्पर्धी राज्यों के बीच अपने प्रदेश का पोहा उद्योग अब संकट से उबर रहा है। जहां एक ओर बंद होती पोहा मिलों की संख्या पर ब्रेक का लगना चालू हो चुका है तो काम के कम किए गए घंटे फिर से बढ़ाए जाने लगे हैं। इसके अलावा निर्माणाधीन नई पोहा मिलों के निर्माण को भी गति मिलने लगी है।
“उत्पादन और मांग में 10 से 15% की वृद्धि हो रही है। हर संभावित विकल्प पर अभी भी गंभीरता से ध्यान है। अच्छी बात यह है कि प्रदेश की बंद होती पोहा मिलों की संख्या में कमी आने लगी है।”
कमलेश कुकरेजा,
अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ पोहा मिल एसोसिएशन, रायपुर