कोरबा- छत्तीसगढ़ राज्य पावर कंपनी ने कोरबा ईस्ट के 120 मेगावाट की दो यूनिट अब इतिहास बन गई हैं। 31 दिसंबर की रात से इनमें उत्पादन बंद कर दिया गया है। अब इनमें नए साल के पहले दिन से उत्पादन नहीं होगा। इनको बंद करने के पीछे जहां लाख जतन के बाद भी प्रदूषण पर नियंत्रण का न होना है वहीं इन यूनिटों में उत्पादन भी साढ़े चार रुपए यूनिट है जो बहुत महंगा है। इन यूनिट में जितने लोग काम करते हैं उतने लोगों में 500 मेगावाट के दो यूनिट में उत्पादन हो जाता है। पावर कंपनी ने कोरबा ईस्ट में 50 मेगावाट के चार और 120 मेगावाट के दो यूनिट स्थापित किए गए थे। इनमें से 50 मेगावाट के यूनिट तो 1962 में रूस की मदद से स्थापित हुए हैं। इन यूनिट में बहुत ज्यादा प्रदूषण होने के कारण कई बार जब एनजीटी ने नोटिस पर नोटिस दिया तो इनको दो साल पहले बंद कर दिया गया।

इसी समय लगभग तय हाे गया था कि आने वाले समय में 120 मेगावाट के यूनिट भी बंद किए जाएंगे। क्योंकि इन यूनिटों के बहुत पुराने होने के कारण इसमें भी प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है। इनमें एक यूनिट 1976 और एक यूनिट 1981 का है। इनको कंट्रोल करके जैसे तैैसे दो साल तक खींचा गया। इसके पीछे का कारण यह रहा कि इनको अचानक बंद करने से बिजली की कमी का सामना करना पड़ सकता था। अब जबकि पावर कंपनी के पास पर्याप्त बिजली का उत्पादन होने लगा है तो इन यूनिट को बंद कर दिया गया है।

बिजली की नहीं हाेगी कमी
पावर कंपनी के अधिकारियों का साफ कहना है कि इन यूनिट के बंद होने से बिजली की कमी नहीं होगी। इस समय पावर कंपनी के पास अपना 32 सौ मेगावाट का उत्पादन होता है। इसमें से 240 मेगावाट कम होने से अपना उत्पादन 2960 मेगावाट रह जाएगा। इसी के साथ पावर कंपनी को लारा के 800 मेगावाट के दो यूनिटों से 800 मेगावाट बिजली मिल रही है। प्रदेश में जो अन्य निजी संयत्र हैं उनसे लागत मूल्य पर तीन से पांच सौ मेगावाट बिजली मिल जाती है। इसके साथ ही सेंट्रल सेक्टर में छत्तीसगढ़ का दो हजार मेगावाट शेयर है। ऐसे में पावर कंपनी के छह हजार मेगावाट बिजली हो जाती है। इसमें से मड़वा की एक हजार मेगावाट बिजली तेलंगाना को दी जाती है। इसके बाद भी पांच हजार मेगावाट बिजली बच जाती है। आज तक कभी भी खपत पांच हजार मेगावाट तक नहीं गई है। पिछले साल गर्मी में रिकार्ड 47 सौ मेगावाट तक गई थी।

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