बिलासपुर- 34 प्रतिशत नाइट्रोजन के साथ यूरिया का विकल्प बन चुका वानिकी वृक्ष ग्लाईरिसिडिया याने ” गिरी पुष्प” महाराष्ट्र के बाद छत्तीसगढ़ पहुंचने की राह देख रहा है। राजस्थान के जयपुर स्थित महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को रिसर्च में मिली सफलता के बाद राजस्थान के बाद महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर इसके वृक्ष लगाए जा चुके हैं। इनसे हासिल पत्तियों को यूरिया का जोरदार विकल्प के रूप में उपयोग किया जा रहा है। सफलता के बाद किसान तेजी से कृत्रिम उर्वरक यूरिया से किनारा कर रहे हैं।

उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले इलाके में बेहद तेजी से तैयार होने वाले ग्लाईरिसिडिया के पेड़ों की ओर जयपुर के कृषि वैज्ञानिकों का ध्यान तब गया जब यूरिया का विकल्प खोजा जा रहा था। रासायनिक की जगह प्राकृतिक उर्वरक खोज में राजस्थान के अरावली के जंगलों में ग्लाईरिसिडिया के पेड़ मिले। अरावली पर्वत श्रृंखला के जंगलों में मिले इस पेड़ की पत्तियों को लेकर हुए रिसर्च में खुलासा हुआ है कि यह यूरिया का कारगर विकल्प तो हो ही सकता है साथ ही इसके पेड़ों के कुछ हिस्से फसल की और दूसरी जरूरतें भी पूरी करने में सक्षम है। रिसर्च की सफलता के बाद बड़े पैमाने पर इसका पौधरोपण किया गया और किसानों तक इसकी जानकारी पहुंचाई गई। अब राजस्थान में यूरिया की मांग तेजी से घट रही है तो महाराष्ट्र में भी यूरिया पर से निर्भरता खत्म होती जा रही है क्योंकि यहां भी इसके पौधरोपण बड़ी संख्या में किए जा चुके हैं।
इसलिए किया अनुसंधान
उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों को खेतों में यूरिया को अच्छी खासी जगह मिल चुकी है लेकिन यह कई तरह के घातक नुकसान पहुंचा रहा है। मसलन भूमि की घटती उर्वरा शक्ति, बढ़ता कीट प्रकोप तो मुख्य है ही साथ ही इससे हासिल अनाज मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक माना जा चुका है। सबसे ज्यादा परेशान करने वाली स्थिति तब आती रही है जब हर बरस दुकानों में इसकी शॉर्टेज होने पर किसानों को बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है। वह भी कालाबाजारी के बीच मिल पाती है।
क्या है ग्लाईरिसिडिया
उष्णकटिबंधीय जलवायु मैं तैयार होने वाला ग्लाईरिसिडिया एक ऐसा वृक्ष है जिसकी पत्तियों में यूरिया के प्राकृतिक विकल्प के गुण हैं। 12 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ने वाला यह वृक्ष तेजी से ग्रोथ लेता है। प्रचंड गर्मी या फिर आग लगने से नष्ट हो जाने के बाद भी रह गए अंश में फिर से अंकुरण होने की क्षमता का खुलासा हुआ है। यह अम्लीय पीएच-मान वाली मिट्टी के साथ रेतीली, भारी, क्षारीय, लाइम और कैल्शियम वाली मिट्टी में आसानी से तैयार हो जाता है। ऐसी मिट्टी इस पेड़ के संपर्क में आकर अपनी उर्वरा शक्ति बढ़ाने में सफल रहते हैं।
इसलिए यूरिया का विकल्प
ग्लाईरिसिडिया का पेड़ मिट्टी में कार्बनिक, भौतिक पदार्थों के गुणों को बढ़ाता है। उर्वरता और मृदा की जल धारण क्षमता को भी बढ़ाने में सक्षम है। पादप सामग्री के विघटन के दौरान यह कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बनिक अम्ल का उत्पादन करता है जिसकी वजह से मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है। मेड़ पर लगाया जाने वाला यह पेड़ 34 प्रतिशत नाइट्रोजन देता है जो यूरिया का अति महत्वपूर्ण घटक है और यही घटक इसे यूरिया का स्वाभाविक और प्राकृतिक विकल्प बनाने में सहायक है।
महत्वपूर्ण है पत्तियां और तना
रिसर्च में जैसे गुणों का खुलासा हुआ है वह बेहद चौंकाने वाला है। इसकी पत्तियां यूरिया का विकल्प बनने में संपूर्ण पेड़ की मदद करती है क्योंकि इसमें नाइट्रोजन 2.4 प्रतिशत, फास्फोरस 0.1 प्रतिशत, पोटेशियम 1.8 प्रतिशत के साथ कैल्शियम और मैग्निशियम जैसे तत्व भी मिले हैं। अनुसंधान के बाद राजस्थान और महाराष्ट्र के किसान इसके पौधरोपण में देश में सबसे आगे बढ़ चुके हैं। इससे इन राज्यों में यूरिया की मांग में आश्चर्यजनक गिरावट देखने में आ रही है।
“उष्णकटिबंधीय प्रदेश का यह पेड़ ग्लाईरिसिडिया ऐसा पेड़ है जिसकी जड़ों में ग्रंथिकाएं होती है। इसके माध्यम से यह पेड़ वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन को स्थिर कर अपने भीतर ले आता है। इसकी वजह से जड़े भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है और पत्तियां तक नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम की पहुंच आसान हो जाती है। कृषि वानिकी के क्षेत्र में ग्लाईरिसिडिया के लिए छत्तीसगढ़ की जलवायु उपयुक्त है।”
डॉ अजीत विलियम्स
साइंटिस्ट, फॉरेस्ट्री टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन बिलासपुर