भाटापारा- वैसे तो रजनीगंधा को श्री कृष्ण जन्माष्टमी सबसे ज्यादा प्रिय है लेकिन उसे शादी ब्याह, लोकार्पण, शिलान्यास और स्वागत समारोह में भी भाग लेना खूब अच्छा लगता है। बर्थडे पार्टी में बच्चों और बड़ों के साथ परिवार के साथ रहने जैसा लगता है। आज यह सब उससे दूर, बहुत दूर हो चुके हैं। यह इसलिए क्योंकि हर कोई बेहद सावधान हो चुका है। यह देखकर मोगरा ने घर छोड़ दिया है।

अब रजनीगंधा को कोई नहीं बुला रहा। गुलाब हताश हो चुका है क्योंकि कोरोना का भय सभी के मन में इतनी गहराई तक जड़े जमा चुका है कि ऐसे आयोजनों पर रोक लग चुकी है। पूछा जा सकता है कि यह रजनीगंधा कौन है जिसके दुख सामने आ रहे हैं। पूछ लीजिए कि यह गुलाब कौन है जिसने घर छोड़ दिया है? जवाब है-यह सब तो फूल है जिनकी अब कोई पूछ नहीं है क्योंकि ऐसे सभी कार्यक्रम जिनमें भीड़ जमा होती है उनमें सीमित संख्या की शर्तें रख दी गई है लिहाजा करोड़ों तो नहीं लेकिन लाखों की रकम वाले इस बाजार को तगड़ा झटका दिया है कोरोना ने। अब दीपावली की तैयारी के ठीक पहले नवरात्रि ने दस्तक दे दी है लेकिन अच्छी ग्राहकी की उम्मीदों पर कड़ी गाईडलाईन ने पानी फेर दिया है।

जन्माष्टमी से छाया सूनापन
मार्च में कोरोनावायरस के संक्रमण ने जिस गति से हर क्षेत्र को घेरना चालू किया उसके बाद फूल बाजार को पहला झटका श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर लगा। तेजी से जारी होते गाईडलाईन के पालन की बाध्यता ने मंदिरों तक फूलों की राह में सबसे पहले कांटा बोया। उसके बाद जितने भी त्यौहार और पर्व आते गए उनसे और फूल बाजार के बीच की दूरी बढ़ती ही चली गई। आज स्थिति यह है कि 15 अगस्त का राष्ट्रीय पर्व खामोशी से गुजर गया तो गणेश पूजन फिर पितृपक्ष और अब नवरात्रि इस बाजार के हाथ से दूर हो चुका है।

यहां से भी हुए दूर
जैसे-जैसे कोरोना फैलता गया वैसे-वैसे सभी आयोजनों में उपस्थिति कम होती चली गई। शादियों के तारीखों से बहुत उम्मीदें थी लेकिन इसमें भी बंधन लगा दिया गया। शिलान्यास, लोकार्पण, उदघाटन या स्वागत समारोह की सबसे पहली जरूरत वाली चीजों की सूची में फूल, गुलदस्ता और मालाएं हटा दी गई क्योंकि ऐसे आयोजन भी रोक के घेरे में आ चुके हैं। लिहाजा हमेशा मुस्कुराने वाला यह बाजार आज बेहद उदास है इतना कि नवरात्रि जैसा पर्व भी उसे पास में बनाए रखने से परहेज करता दिखाई दे रहा है क्योंकि इस पर भी एक तरह से रोक लग चुकी है।

बढ़ रहा नुकसान का आंकड़ा
पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र से आने वाले फूलों के दम पर यह बाजार हर माह 5 से 8 लाख रुपए का माना जाता है क्योंकि हर आयोजन में इनकी पहुंच अनिवार्य हो चुकी है लेकिन यात्री ट्रेनें बंद है। सड़क मार्ग खुल तो चुके हैं लेकिन परिवहन व्यय पर पहले से दोगुनी रकम व्यय करनी पड़ रही है। रही-सही कसर सभी आयोजनों पर रोक ने पूरी कर रखी है इसलिए इस बाजार को नुकसान के बढ़ते आंकड़ों से सामना करना पड़ रहा है। अब जमीन पर आ चुके इस व्यवसाय से किराए की रकम तक निकाल पाना मुश्किल भरा काम हो चुका है।

अंतिम आस भी टूटी
फूल बाजार हमेशा से श्री कृष्ण जन्माष्टमी से लेकर दीपावली तक गुलजार रहा करता था क्योंकि इसी के साथ पर्व और त्योहारों का सिलसिला जो चालू होता था वह साल के अंत तक बना रहता था। अब यह सारे कोरोना की नजर में आ चुके हैं इसलिए दीपावली से भी फूलों को कोई उम्मीद नहीं है। इसलिए क्योंकि इसकी रौनक के बीच फूलों की पहुंच पर रोक लगाता हुआ साफ साफ दिखाई दे चुका है। विश्वास के साथ यह बाजार इसलिए कह रहा है क्योंकि नवरात्रि पर मंदिरों के कपाट बंद किए जा चुके हैं और दुर्गा स्थापना करने वाली समितियां दूर हो चुकी है।

अब सिर्फ छह
फूल बाजार में अब सिर्फ गेंदा, गुलाब, रजनीगंधा, कमल, आर्किड और जरबेरा जैसी प्रजातियां रह गई है। मोगरा तो कब का घर छोड़ चुका है। दूसरी अन्य प्रजातियों के भी घर छोड़ने के बाद इस समय गेंदा 30 से 50 रुपए किलो पर उपलब्ध है तो गुलाब ने भी अपनी कीमत घटा ली है। यह अब केवल पांच से 10 रुपए प्रति नग पर मिल रहा है। आर्किड 20 रुपए जैसी सबसे निचली पायदान पर आ चुका है तो जरबेरा 10 रुपए में लिया जा सकता है। रजनीगंधा 200 रुपए किलो की कीमत के साथ साल के सबसे नीचे की स्थिति पर है।

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