बिलासपुर- पौधरोपण के लिए बीज डालने के बाद बार-बार देख रेख से मिला छुटकारा। जापानी तकनीक से बनी पौधरोपण की यह तकनीक हर उस क्षेत्र के लिए बेहद सुरक्षित और सरल तकनीक है जहां बीज को या तो चूहे चट कर जाते हैं या फिर चिड़िया उन्हें चुन कर ले जाती है। सीड बाल तकनीक है इस विधा का नाम जो ग्रामीण इलाके मैं तेजी से लोकप्रिय हो चुकी है।

पौधरोपण के लिए पौधों की उपलब्धता का इंतजार करने की जरूरत नहीं। न ही ऊंची कीमत देकर नर्सरियों से फलदार पौधे की खरीदी करनी होगी। जापान से आई तकनीक कृषि महाविद्यालयों में आसानी से उपलब्ध करवाई जा रही है। यह भी बताया जाएगा कि इस विधि को कैसे सीखा जा सकता है और सीड बॉल बनाया जा सकता है। यह विधि पौधरोपण को बेहद आसान बना रही है। खासकर उन क्षेत्रों में इसे तेजी से जगह मिल रही है जहां बीज खराब होने या चूहों के द्वारा चट कर जाने या फिर चिड़िया द्वारा चुनकर उड़ जाने से बीज द्वारा पौधरोपण की योजना अमल में लाई जा रही है।
क्या है सीड बॉल
मूलतः जापान की यह तकनीक देश में सबसे पहले चंबल के बीहड़ में उपयोग की गई। यह बेहद सफल रही। इसके बाद यह तकनीक धीरे धीरे देश के सभी राज्यों में अपनाई जाने लगी। इस तकनीक में मिट्टी, गोबर की खाद का मिश्रण तैयार किया जाता है। फिर इसमें बीज डाल दिए जाते हैं। गोल करने के बाद इसे राख में लपेट कर सुखा दिया जाता है। गर्मी के दिनों में किया जाने वाला यह काम बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा काम आता है जब यह बाल सूख जाते हैं इनके भीतर बीज होता है इसलिए इसे सीडबॉल कहा जाता है। बारिश के दिनों में थोड़ी सी गहराई मैं इस बाल को डाल दिया जाता है। इस तरह मिट्टी और बारिश दोनों के संपर्क में आकर बीज अंकुरित होते हैं और नए पौधे बनते हैं।
सीड बॉल में इनके बीज
वानिकी और फलदार पौधे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए इस तरह के बनाए गए सीड बॉल में वानिकी वृक्षों को प्रमुखता से जगह मिली हुई है। इनमें नीम, अमलतास, गुलमोहर, करंज, सफेद शिरिष,काला शिरिष और फलदार पौधों में जामुन, आम, अमरूद, सीताफल, आंवला सहित सभी फलदार पौधों को सीड बॉल में जगह मिलती है जिनको पौधरोपण के माध्यम से रोपा जाता है।
इसलिए बढ़ रहा महत्व
सीड बॉल तकनीक से नए पौधों को जगह का मिलना इसलिए पक्का माना जाता है क्योंकि पौधरोपण के बाद उचित देखरेख के अभाव में पौधे या तो सूख हैं या फिर बहुत ग्रोथ नहीं ले पाते जबकि सीड बॉल में बीज डालने के समय ही प्राकृतिक खाद मिल जाती है इसलिए यह सूखने जैसी समस्या से सुरक्षित रहते हैं और बारिश के दिनों में इनको पहले से बनाए गड्ढों में डाल दिया जाता है। इसके बाद यह उस जगह की मिट्टी के अनुरूप अपने आप को ढाल लेते हैं और अंकुरित होकर नए पौधे के रूप में सामने आते हैं।
“सीड बॉल तकनीक से तैयार होने वाले पौधों में मुख्यतः वानिकी पौधों की प्रजातियों को जगह मिलती है क्योंकि इस विधि से तैयार होने वाला पौधा आसानी से मिट्टी की प्रकृति के अनुरूप अपने आप को ढाल लेता है।”
डॉ अजीत विलियम, साइंटिस्ट, फॉरेस्ट्री, टीसीबी कॉलेज एग्री एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर
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