रायपुर- तगड़ा झटका। उपभोक्ता राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर के बाद लॉकडाउन के फैसले का असर प्रदेश की पोहा यूनिटों पर पड़ने लगा है। जमीन पर आ चुकी मांग के बाद अब यह क्षेत्र फिर से उत्पादन की मात्रा तेजी से कम करना चालू कर चुका है।

महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश हमेशा से छत्तीसगढ़ के पोहा उद्योग के भरोसेमंद साथी रहे हैं। उत्पादन का लगभग 75 फ़ीसदी हिस्सा इन्हीं दोनों राज्यों को जाता रहा है लेकिन यह दोनों फिर से कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ चुके हैं। लिहाजा लॉकडाउन जैसे फैसले ने छत्तीसगढ़ की पोहा यूनिटों को हिला कर रख दिया है। लागत में वृद्धि और टूटते बाजार से बचने के प्रयासों के बीच अंतिम प्रयास के रूप में, काम के घंटे काम करने और उत्पादन घटाने जैसे फैसले लिए जाने लगे है लेकिन यह फैसला कब तक राहत पहुंचा पाएगा, इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।

इसलिए कम किया उत्पादन
कोरोना संक्रमण की पहली लहर से निपटने के बाद अभी बाजार ने फिर से रफ्तार पकड़ी ही थी कि संक्रमण की शिकायतों के बाद लॉकडाउन जैसे फैसले ने इस गति पर फिर से ब्रेक लगा दिया है। महाराष्ट्र में बेहद कड़ाई के साथ लागू किया गया लॉकडाउन के बाद आंध्रप्रदेश के भी काफी बड़े हिस्से में भी इसी तरह के फैसले लिए जा चुके हैं। बता दें कि जिन क्षेत्रों में कड़ाई ज्यादा है वहां से ही सबसे ज्यादा मांग निकलती रही है। अब चूंकि बाजार बंद हैं। लोग घरों में बंद हैं। इसलिए मांग जमीन पर आ चुकी है। यही वजह है कि काम के घंटे और उत्पादन की मात्रा कम करने जैसे अप्रिय फैसले लेने पड़ रहे हैं।

नुकसान से बचने यह फैसला
छत्तीसगढ़ में वैसे तो 200 की संख्या के आसपास पोहा मिलें हैं लेकिन इनमें से 175 से 180 मिलें ही संचालन में हैं। ताजा परिस्थितियों के बाद इनकी संख्या में और भी गिरावट की खबर आने लगी है। बाजार घटने के बाद पोहा मिलों में नुकसान से बचने के हर संभावित विकल्प की खोज के बीच या तो काम के घंटे कम किए जाने लगे हैं या फिर उत्पादन की मात्रा कम की जाने लगी है क्योंकि घरेलू मांग भी राहत नहीं दे पा रही हैं।

रियायत की दरकार
प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच काम कर रहा यह क्षेत्र अब बिजली दरों में कमी और मंडी टैक्स में छूट जैसी मांग के साथ सरकार के पास जाने की तैयारी कर रहा है ताकि समय रहते कृषि आधारित इस उद्योग की जान बचाई जा सके। भरोसा इसलिए भी है क्योंकि यह क्षेत्र रोजगार के वृहद अवसर देने वाला क्षेत्र के रूप में भी मजबूत पहचान बना चुका है।

“उपभोक्ता राज्यों की मांग में कमी आने लगी है। इसलिए काम के घंटे कम करने और उत्पादन की मात्रा घटाने का फैसला लेना पड़ रहा है। लागत में जैसी वृद्धि आ रही है उसके बाद बिजली दरें कम करने और मंडी शुल्क में छूट की मांग सरकार से की जाएगी।”
कमलेश कुकरेजा,
अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ पोहा मिल एसोसिएशन, रायपुर

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