भाटापारा- बंद देवी मंदिरों के कपाट के पीछे मनाया जाएगा नवरात्रि का पर्व। असर जरूरी पूजन सामग्रियों के उत्पादक क्षेत्र से लेकर उन दुकानों तक पहुंच चुका है जो ऐसे मंदिरों में होने वाले पर्व के सहारे परिवार का भरण पोषण करते हैं। प्रसाद के रूप में पहला असर नारियल पर पड़ चुका है। बिक्री घटकर एकदम से 50 फ़ीसदी पर आ गई है।
अंचल के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से एक तरेंगा का महामाया मंदिर और दूसरा सिंगारपुर का श्री मावली देवी मंदिर है। इस बार विपरीत परिस्थितियों के बीच नवरात्रि का पर्व मनाया तो जाएगा लेकिन कड़े बंधन के बीच। कलश स्थापना, पूजा, दर्शन और कारोबार तक हर कदम पर शर्तों का ब्रेक इतनी मजबूती से लग चुका है कि मंदिरों के पसीने छूटने लगे हैं लेकिन उपाय या विकल्प है नहीं। इसलिए कड़ी शर्तों के बीच यह पर्व संपन्न होने जा रहा है।

ऐसा हुआ असर
नारियल। नवरात्रि पर सबसे ज्यादा बिकने वाली सामग्री। बिक्री रहेगी 50 फ़ीसदी। प्रयास जारी। हर भक्तों के हाथों तक पहुंचाने कीमत की कम। मंदिरों के कपाट बंद होने के बावजूद बिक्री 5,000 नग प्रतिदिन। सामान्य दिनों में होती थी 10,000 नग की बिक्री। याने छोटे कारोबारियों के हाथ से छुटा मौका। इसलिए क्योंकि दुकानें लगाने की नहीं मिलेगी अनुमति।

ऐसी है कीमत
नवरात्रि पर नारियल की दोनों किस्मों की कीमतें बढ़ा करती थी। इस बार हालात बदले-बदले से हैं। मंदिरों के कपाट बंद होने के बाद ग्राहक की घटकर आधी रह गई है। याने सूखा नारियल थोक में 12 से 13 रुपये प्रति नग। चिल्हर में 16 से 19 रुपए। कच्चा नारियल थोक में प्रति नग 12 से 18 रुपए। चिल्हर में 19 से 20 रुपए। इसके बावजूद खरीददारों की संख्या आधी पर आ चुकी है।

बेहाल उड़ीसा और आंध्र प्रदेश
छत्तीसगढ़ में नवरात्रि पर उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से भरपूर आपूर्ति होती है। नारियल उत्पादक इन दोनों राज्यो की हालात बेहद खराब है क्योंकि पश्चिम बंगाल के बाद छत्तीसगढ़ नवरात्रि पर सबसे ज्यादा नारियल की खरीदी करता है। करोना और नियमों के बंधन के बीच इन दोनों राज्यों से मांग घटकर आधी रह गई है। प्रदेश के हर क्षेत्र से बीते साल की तुलना में आधी मात्रा ही मांगी जा रही है।