भाटापारा- बीते बरस कोरोना ने चपत लगाई थी। इस बरस तेजी चपत लगा रही है। कद्दू वर्गीय फसलों की तैयारी कर रहे ऐसे किसान जो नदी तट पर तरबूज या खरबूज की खेती की तैयारी कर रहे हैं उनको बीज की कीमत इस बार ज्यादा चुकानी पड़ेगी। यह तेजी आने वाले दिनों में और आने की आशंका है।
पहले धान, फिर सब्जी उत्पादक किसान। अब नंबर है उन किसानों का, जो नदी तट पर तरबूज, खरबूज, ककड़ी और खीरा की व्यावसायिक फसल लेने की तैयारी कर रहे हैं। इस तैयारी के बीच इन तीनों फसलों के बीज के दाम जिस तरह बढ़त ले रहे हैं उससे खरीदी की मात्रा कम तो की ही जा रही हैं इसके अलावा कीमत कम करवाने के प्रयास भी किए जाने की खबर आ रही है। बता दें कि अपने जिले में कसडोल, लवन, पलारी के साथ सिमगा ब्लॉक में महानदी और शिवनाथ के तटीय इलाके में इसकी तैयारी अंतिम दौर में पहुंच चुकी है।

इसलिए खरीदी की मात्रा सीमित
जिले के कसडोल, लवन, पलारी और सिमगा ब्लॉक से होकर गुजरने वाली शिवनाथ और महानदी के तटीय क्षेत्र में सालों से खरबूज और तरबूज की खेती करने वाले किसानों ने आसमान छू चुकी बीज की कीमतों के बाद खरीदी की मात्रा कम करनी चालू कर दी है तो कुछ ऐसे किसान भी हैं जो कम गुणवत्ता वाले बीज की खरीदी के लिए मजबूर हैं क्योंकि कीमत, क्रय शक्ति से बाहर जा चुकी है।

मिलेंगे इस कीमत पर
काला और गोल तरबूज हमेशा से किसानों की पहली पसंद रहा है। मिठास और गुणों से भरपूर इस प्रजाति के तरबूज के बीज की 50 ग्राम की खरीदी पर 200 रुपए लिए जा रहे हैं। जबकि धारीदार तरबूज जो मिठास में सबसे ज्यादा माना जाता है इसके बीज के लिए 250 रुपए देने होंगे। मात्रा भी 50 ग्राम ही होगी। खरबूज के शौकीन तरबूज की तुलना में कम ही हैं लेकिन इसके भी बीज 50 ग्राम खरीदने पर बाजार 300 रुपए ले रहा है।

इसलिए बढ़ रहा रकबा
जिले के महानदी और शिवनाथ के तटीय इलाकों में ली जाने वाली इन फसलों के सौदे फल के लगते ही होने लगते हैं। इसमें पहली श्रेणी की फसल निर्यात के लिए सुरक्षित रखी जाती हैं तो दूसरी श्रेणी की फसल का सबसे बड़ा उपभोक्ता महाराष्ट्र और दिल्ली है। दो बार की ग्रेडिंग के बाद तीसरी और चौथी श्रेणी की फसल स्थानीय बाजार में पहुंचती है। निर्यात और महाराष्ट्र तथा दिल्ली की खरीददारी के बाद अपना जिला प्रदेश से बाहर निकल कर देश ही नहीं विदेश में भी पहचान बना चुका हैं।
“व्यावसायिक खेती के बाद देश स्तर पर तरबूज और खरबूज के बीज की कीमतें बढ़ चुकी है। इसका असर स्थानीय बीज बाजार पर भी पड़ रहा है। तेजी आगे भी बनी रहने की संभावना है।”
कमल वर्मा,
संचालक, वर्मा बीज भंडार, भाटापारा