रायपुर- एक उपज के 5 दुश्मन। 5 तरीके से हमला। यदि रक्षा पंक्ति मजबूत नहीं की तो हार तय है। इसलिए हर समय अपनी रक्षा पंक्ति मजबूत बनाने के लिए निगरानी की सख्त जरूरत है। फिलहाल जैसा मौसम है उसमें तो किसान ही इन पांचों दुश्मन के घेरे में आ चुका है। अब देखना यह है कि किस तरह वह इन से जीत पाता है।
सितंबर का महीना वैसे भी किसानों के लिए सतर्क रहने वाला माना जाता रहा है। जरा भी लापरवाही की तो पराजय निश्चित है। क्योंकि सबसे बड़ा, सबसे से तेज हमलावर भूरा माहो खेतों में प्रवेश कर चुका है। बचाव के उपाय तो किए जा रहे हैं लेकिन रक्षात्मक पंक्ति बनाने में जो मेहनत और आर्थिक संसाधन खर्च की जा रही है उसके बाद यह जीत की ओर बढ़ता पहला कदम है लेकिन यह तब ही संपूर्ण जीत के रूप में सामने दिखाई देगी जब खलिहान में पहुंचने वाली फसल सही सलामत आंखों के सामने होगी।
पांच दुश्मन-पांच हमला-पांच नुकसान
भूरा माहो! धान का सबसे बड़ा दुश्मन। पत्तियों के रास्ते तना को बनाता है स्थाई ठिकाना। पौष्टिक तत्व को खींचता है। पौधे पहले पीले पड़ने लगते हैं। बाद में सूख कर गिर जाता है याने समूल सफ़ाया।

ब्लास्ट! तेज हमलावर। पत्तियों और तना को घेरते हुए बालियों तक पहुंचने वाले पौष्टिक तत्व को रोकता है। पत्तियां भूरी और स्लेटी रंग की होने लगती है। बालियां निकलती ही नहीं। इस तरह पौधों की अकाल मौत।

तना छेदक! अचूक निशानेबाज। पत्तियों में छेद करके तना के भीतर प्रवेश करता है। बालियों के निकलने का रास्ता बंद करता है। निकल चुकी बालियों में दाने नहीं लगते। याने बालियों पर निशाना।

झुलसा! विकास का दुश्मन। जीवाणु जनित यह रोग पत्तियों के सहारे पौधों को बीमार बनाता है। इसके ही सहारे यह नीचे तक पहुंच कर विकास का रास्ता रोकता है। इससे पत्तियां पैरा के रंग की हो जाती है।

चितरी! अंतिम दुश्मन। कोमल पत्तियां खाने वाला यह कीट अपने लार से धागों का घेरा बनाता है। जिससे बालियां नहीं निकलती है। पत्तियों के भूरे होने और जालियों से इसकी पहचान संभव है।

मजबूत रक्षक! भूरा माहो के लिए फेनोब्यूकार्न।
ब्लास्ट के लिए ट्राईसाईक्लोजोंल। चितरी के लिए फोसालोन ट्राईजोफ़ास। तना छेदक के लिए करटॉप हाइड्रोक्लोराइड।
झूलसा के लिए टेट्रासाईक्लीन हाइड्रोक्लोरोड।
“प्रारंभिक अवस्था में बचाव के उपाय के लिए दवाओं का छिड़काव एवं प्रकोप ज्यादा होने पर पोटाश का छिड़काव कर कीट नियंत्रण किया जा सकता है.”
डॉ डी.के. राना
डीन, कृषि महाविद्यालय, रायपुर