इस साल 5 तो,अगले साल 50 किसान करेंगे ब्लैक राईस की खेती

रायपुर/बलरामपुर- ब्लैक राईस की खेती करने की चाहत रखने वाले किसानों के लिए खुशखबरी। अब इसके बीज के लिए पूर्वोत्तर राज्य पर से निर्भरता खत्म होने जा रही है क्योंकि इसकी फसल सुदूर वनांचल बलरामपुर के वाड्रफनगर ब्लाक के ग्राम बलेसर में ली जा रही है। सीड प्रोडक्शन प्लान के तहत इसकी फसल कृषि विभाग के विशेषज्ञों की टीम की देखरेख में ली जा रही है।

अपने प्रदेश में धान की बरसों पुरानी एक से बढ़कर एक धान की प्रजातियां ना केवल मिलती रही है बल्कि इनके गुणों पर रिसर्च भी हो रहे हैं और हैरत में डालने वाले परिणाम भी मिलते रहे हैं। इसी क्रम में कृषि विभाग की पहल पर पहली बार ब्लैक राइस की फसल के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया गया। कुछ हिचकते, कुछ झिझकते किसानों ने खरीफ सत्र 2019 -20 में प्रायोगिक फसल ली और इसकी फसल बाजार में पहुंची और खरीदारों ने हाथों हाथ लिया। बढ़ती मांग के बाद अब इसके बीज उत्पादन की दिशा में काम चालू कर दिए गए हैं ताकि यह प्रदेश के हर जिले में किसानों तक पहुंच सके।

पूर्वोत्तर में है लोकप्रिय

देश के पूर्वोत्तर राज्य असम में इसकी खेती होती रही है लेकिन इसकी पहुंच देश के अन्य राज्यों में बना पाने में वहां के किसान सफल नहीं हो पाए। ऑनलाइन प्रचार मैं जब विभाग ने इसे देखा और गुणों की पहचान की तब जिले के किसानों को प्रोत्साहित किया। बड़ी मशक्कत के बाद जिले में वाड्रफनगर के ग्राम बेलसर के 5 किसान तैयार हुए। किसानों ने ही इसके बीज की खरीदी 1830 रुपए प्रति किलो की दर पर की और प्रयोग के तौर पर फसल ली। प्रयोग सफल रहा और इस बार इसका रकबा बढ़ाया जा चुका है।

सीड प्रोडक्शन के लिए खेती

बलरामपुर जिले के कृषि विभाग के अधिकारियों की पहल और लाभ से परिचित हो चुके 5 किसानों ने ब्लैक राईस बीज उत्पादन के लिए फसल लेने पर सहमति जताई है। इसके बाद विभाग के मार्गदर्शन में 10 एकड़ में ब्लैक राईस की फसल ली जा रही है। कटाई के बाद इसे बीज की ग्रेडिंग की जाएगी और इसे उन किसानों तक पहुंचाया जाएगा जो ब्लैक राईस की व्यवसायिक खेती करना चाहते हैं। इस तरह यह आने वाले 2 साल में प्रदेश के अधिकांश जिले तक पहुंच बना सकेंगे और बेहतर कीमत से लाभ दिला सकेगा।

परिपक्वता अवधि और उत्पादन

बलरामपुर जिला के कृषि अधिकारियों के मुताबिक ब्लैक राईस के पौधों की पत्तियां दूसरे धान की प्रजातियों की तरह हरे रंग की ही होती है। लेकिन बालियों में लगने वाले दाने का रंग ब्लैक होता है। यहां तक कि मिलिंग के बाद हासिल चावल भी ब्लैक कलर का होता है। 140 से 145 दिन की अवधि में तैयार होने वाली यह प्रजाति प्रति एकड़ उत्पादन 10 से 15 क्विंटल देती है। उचित प्रबंधन के बाद यह आंकड़ा थोड़ा और बढ़ाने मैं मदद मिल सकती है।



मिले जरूरी पोषक तत्व

ब्लैक राईस अन्य प्रजातियों की तरह पोषक तत्वों से भरपूर है लेकिन कुछ गुणों में यह उपलब्ध अन्य प्रजातियों से खुद को खास बनाता हैं। जैसे इसमें स्वस्थ रखने के लिए जरूरी मिनरल की मात्रा ज्यादा है तो तो फाइबर की भी प्रचुरता है। जबकि ग्लूकोज की मात्रा अपेक्षाकृत काफी कम है। इसके यही गुण ब्लैक राईस को महत्वपूर्ण स्थान दिलाता है।

यह है बोनी की विधि

खुर्रा बोनी पद्धति से प्रति एकड़ बीज की मात्रा 10 किलो का होना आवश्यक है जबकि रोपाई विधि से फसल लेने के लिए प्रति एकड़ 6 किलो बीज की जरूरत होगी। बीज की आसमान कीमत और औषधीय गुणों को देखते हुए ब्लैक राइस की खेती इस बार 5 किसानों के माध्यम से की जा रही है। अगले बरस यह संख्या 50 करने का लक्ष्य तय कर लिया गया है।

“औषधीय गुणों की वजह से बाजार में ब्लैक राईस को अच्छी कीमत मिलती है। उत्पादन का आंकड़ा भले ही बेहद कम है लेकिन इसकी भरपाई अपनी अच्छी कीमत से ली जा सकती है इसलिए इस बार 5 किसान और अगले सत्र में 50 किसान इसकी खेती करने की स्वीकृति दे चुके हैं।”

अजय अनंत, उपसंचालक, कृषि बलरामपुर

“ब्लैक राईस स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। कुछ ऐसे पोषक तत्व इसमें मिले हैं जिनकी मदद से शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है।”

डॉ सुनील कुमार नायर, साइंटिस्ट, जेनेटिक प्लांट ब्रीडिंग सेंटर, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर

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