रायपुर- धान की एक और नई प्रजाति रिसर्च प्रोसेस में आने की तैयारी में है। अनुसंधान के बाद परिणाम अपेक्षा के अनुरूप मिले तो इसे सिलेक्शन प्रोसेस में जगह मिल सकती है। छिलका ही नहीं दाने का भीतरी हिस्सा भी भरपूर लाल होने की वजह से इसे रेड राइस के नाम से पहचान मिल रही है। प्रदेश में कोरबा जिले के करतला ब्लॉक के 3 गांव में इसकी खेती की जा रही है।

रेड राइस। शायद पहला ऐसा चावल, जिसमें कई महत्वपूर्ण तत्व के होने की जानकारी सामने आ रही है। इसके बाद ली जा रही फसल से राह खुल रही है अनुसंधान की, जिसके चालू हो जाने के बाद धान के कटोरे में क्रांति आ सकती है। महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इसकी फसल का लिया जाना चालू हो चुका है। चावल की अच्छी कीमत को आधार बनाकर कोरबा जिले के करतला ब्लॉक में ली गई फसल को जैसा प्रतिसाद मिला है उसके बाद इसे अनुसंधान में लिए जाने की योजना है।

ऐसा है रेड राइस
कोरबा जिले के 3 गांव में ली जा रही रेड राइस धान की प्रजाति के छिलके भी लाल हैं। चावल का ऊपरी आवरण ही नहीं, पूरा भीतरी हिस्सा भी लाल है। अभी तक अपने छत्तीसगढ़ में पसहर चावल को ही रेड राइस के नाम से पहचान मिली हुई है लेकिन इस चावल का आवरण ही लाल होता है, भीतरी हिस्सा अन्य चावल की तरह सफेद है जबकि रेड राइस इसके ठीक उलट है।

इन तत्वों की संभावना
रेड राइस की हुई प्रारंभिक जांच में जिंक और प्रोटीन के होने की जानकारी सामने आ रही है। इसके अलावा इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता के भी होने की संभावना है क्योंकि इसमें इनफोसायमिन और एंटी ऑक्सीडेंट की भी मात्रा अच्छी खासी होने की जानकारी आई है। फाइबर की उपलब्धता भी प्रारंभिक जांच में मिली है।

अनुसंधान की योजना
रेड राइस की जो प्रजाति कोरबा जिले में मिली है उसमें अनुसंधान की योजना है। इसमें यह देखा जाएगा कि नई प्रजाति के चावल में कौन-कौन से पोषक तत्व हैं और इसमें क्या सुधार किए जा सकते हैं? परिणाम सही मिले तो इसे सिलेक्शन प्रोसेस में लिए जाने की संभावना है।

यहां हुई अच्छी फसल
कोरबा जिले के करतला ब्लॉक के ग्राम घिनोरा, बोतली और बिंझकोट के 13 किसानों ने 15 हेक्टेयर रकबे में रेड राइस की फसल ली थी। यह सफल रही है। छत्तीसगढ़ के पहले रेड राइस की व्यावसायिक खेती केरल, तमिलनाडु, झारखंड और बिहार में ली जा रही है। यहां की फसल से हासिल रेड राइस, 150 से 200 रुपए किलो की दर पर बाजार में पहुंच चुकी है।

“कोरबा जिले में रेड राइस की जो फसल ली गई है उसे अनुसंधान में लिया जा सकता है। आशा के अनुरूप परिणाम मिलने पर ही इसे सिलेक्शन प्रोसेस में लिया जाएगा।”
डॉ. ए. के. सरावगी,
प्रो. एंड हेड, जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग, इंदिरा गांधी कृषि वि.वि. रायपुर

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