बस्तर ग्रीन और बस्तर फिल्टर कॉफी के नाम से हुआ लॉन्च
रायपुर/जगदलपुर- दरभा के पास कोलेंग मार्ग पर 3 साल पहले की गई कॉफी की प्रायोगिक खेती को जबरदस्त सफलता मिली है। इस सफलता के बाद हासिल कॉफी को प्रोसेसिंग के बाद बाजार तक पहुंचाने के लिए तैयार किया जा चुका है। ग्रीन कॉफी और फिल्टर कॉफी के रूप में यह बहुत जल्द प्रदेश के सभी शहरों तक पहुंचाए जाने की तैयारी कर ली गई है। और हां पहली बार बस्तानार में हल्दी की खेती भी सफल रही। इसका भी उत्पादन बस्तर हल्दी के नाम से बहुत जल्द बाजार में दिखाई देगा।

बस्तर की धरती वनोपज और खनिज संसाधन से ही भरपूर नहीं है। इसकी मिट्टी में ऐसे ऐसे तत्व हैं जिनके दम पर ऐसी फसलें ली जा सकती है जिसके लिए कुछ चुने हुए राज्यों को ही जाना जाता है। ताजा मामला कॉफी की फसल के जोरदार उत्पादन से जुड़ा हुआ है। साथ ही वैज्ञानिक हल्दी की भी खेती में सफल रहे हैं जिसे अब तक बस्तर के लिए असंभव माना जाता था। अब दोहरी सफलता के बाद हॉर्टिकल्चर साइंटिस्ट उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब यह दोनों उत्पादन बाजार तक पहुंचेंगे और यह देखेंगे कि किस तरह छत्तीसगढ़ की हल्दी और छत्तीसगढ़ का कॉफी अपनी जगह बना रहा है। बता दें कि हल्दी के लिए अपना राज्य आंध्रप्रदेश और कॉफी के लिए केरल पर निर्भर है। अब यह एकाधिकार खत्म होने जा रहा है।

इसलिए बस्तर कॉफी और हल्दी
जिला प्रशासन ने उद्यानिकी वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया कि वह जगह चयन करें और कॉफी और हल्दी की खेती के लिए प्रयोग चालू करें। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि धान की परंपरागत खेती के साथ किसानों को ऐसी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करें जिसे नगदी फसल के रूप में पहचान मिली हुई है। इसमें हल्दी और कॉफी ऐसी फसल है जिसे बाजार में काफी अच्छी कीमत मिलती है। अब इसकी प्रायोगिक खेती को मिली सफलता के बाद बस्तर के दरभा, डिलमिली और बस्तानार की सफलता का विस्तार दूसरे क्षेत्र में भी किया जाएगा ताकि बस्तर के हर किसान इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित हों।

बस्तानार में हल्दी, दरभा में कॉफी
3 साल पहले जिला प्रशासन की पहल पर हॉर्टिकल्चर साइंटिस्ट डॉक्टर के पी सिंह को प्रोजेक्ट की कमान सौंपी गई। इस पर 2017 में काम चालू किया गया। इसमें बस्तानार की भूमि और जलवायु को हल्दी की खेती के लिए और कॉफी के लिए दरभा घाटी के पास कोलेंग मार्ग से लगी 20 एकड़ भूमि को उर्वर पाया गया। इस जगह पर अरेबिका और रूबस्टा कॉफी की प्रजाति के पौधे लगाए गए तो बस्तानार में वहां की जलवायु को देखते हुए हल्दी के पौधे लगाए गए। अब 3 साल बाद कॉफी के पेड़ों में फलों का लगना चालू हो चुका है तो हल्दी की फसल निकाली जाने लगी है। दोनों फसलों की प्रायोगिक खेती से हासिल उत्पादन बाजार में पहुंचने को तैयार है।

तैयार हुआ बस्तर कॉफी, बस्तर हल्दी
3 साल की मेहनत के बाद तैयार फसल की प्रोसेसिंग उड़ीसा के कोरापुट में करवाई गई है। इसमें दो प्रकार की कॉफी बनकर तैयार है। पहला फिल्टर कॉफी जिसकी कीमत 1000 रुपए किलो तो दूसरा ग्रीन कॉफी 800 रुपए किलो की दर पर बेचा जाएगा। जबकि हल्दी की कीमत बाजार में उपलब्ध दूसरी हल्दी की कीमत के आसपास होगी ताकि इसे छत्तीसगढ़ के हर निवासी के घर तक पहुंचाया जा सके। सबसे अच्छी और महत्वपूर्ण सफलता यह मिली है कि बस्तानार में जिस हल्दी की फसल ली गई है उसमें कैंसर रोधी तत्व करक्यूमन की मात्रा अपेक्षाकृत काफी ज्यादा है।

“बस्तर में कॉफी और हल्दी की प्रायोगिक खेती में मिली सफलता के बाद नए सत्र से इन दोनों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि वे अपनी आय बढ़ा सकें।”
डॉ एच सी नंदा,
डीन,
एग्री एंड हॉर्टिकल्चर कॉलेज, जगदलपुर
“बस्तर में कॉफी और हल्दी की खेती के लिए जरूरी भौगोलिक वातावरण और जलवायु बेहद उचित मिली है। इसलिए प्रायोगिक फसल के लिए कॉफी के पौधे दरभा के पास और हल्दी के पौधे बस्तानार में लगाए गए हैं। प्रयोग सफल रहा अब इसका उत्पादन बस्तर कॉफी और बस्तर हल्दी के नाम से प्रदेश में बहुत जल्द उपलब्ध होगा।”
डॉ के पी सिंह,
अनुसंधान अधिकारी,
एग्री एंड हॉर्टिकल्चर कॉलेज, जगदलपुर