रायपुर- आ रही है कम जमीन पर ज्यादा पैदावार देने वाली खेती की नई तकनीक। इसे वर्टिकल फार्मिंग के नाम से पहचान मिल रही है। नई तकनीक पर हैदराबाद, बेंगलुरु, दिल्ली और चेन्नई जैसे मेट्रो सिटी में ना केवल काम चालू हो चुका है बल्कि इसे विस्तार देने की योजना भी बनाई जाने लगी है।
हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स जैसी जानी-पहचानी तकनीक के बीच नई तकनीक, वर्टिकल फार्मिंग को जगह बनाने में कुछ समय जरूर लग सकता है लेकिन मेट्रो सिटी में जिस तरह से अपनाया जा रहा है उसके बाद यह कहने में अब कोई संकोच नहीं है कि यह भविष्य की शहरी खेती बन सकती है। वजह सिर्फ एक है, कृषि भूमि का लगातार कम होता जाना और परंपरागत खेती में लागत का बढ़ना। नई तकनीक को जिस तरह मेट्रो सिटी में जगह मिल रही है उसे देखते हुए यह अब छोटे-छोटे शहरों का रास्ता पकड़ने की तैयारी में है।

क्या है वर्टिकल फार्मिंग
वर्टिकल फार्मिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसके लिए महज एक गमले से लेकर 1 एकड़ तक की भूमि की जरूरत पड़ती है। इस तकनीक में मुख्य रूप से बेल या छोटे पौधों वाली फसल ली जा सकती है। इसमें लौकी, टमाटर, मिर्च, खीरा और पत्ते वाली सब्जियां मुख्य हैं। आसमान की दिशा में बांस या टहनियों के सहारे आगे बढ़ती है ऐसी फसलें। इसकी वजह से सिंचाई के समय पौधे खराब नहीं होते। यह पूरी तरह ऑर्गेनिक होता है क्योंकि खाद एवं कीटनाशक के छिड़काव की जरूरत नहीं पड़ती।

क्यों वर्टिकल फार्मिंग
वर्टिकल फार्मिंग को लेकर बढ़ते रुझान के पीछे कारणों की खोज में यह जानकारी सामने आई है कि देश में कृषि भूमि लगातार हर साल कम होती जा रही है। वर्ष 2016 की रिपोर्ट के अनुसार कृषि योग्य भूमि में 50 फ़ीसदी की कमी आ चुकी है। यह भविष्य में और भी बढ़ सकती है। संकट तब बढ़ेगा, जब इसका असर खाद्यान्न उत्पादन में कमी के रूप में सामने दिखाई देगा। ऐसे में वर्टिकल फार्मिंग, घरेलू जरूरत पूरी करने में मजबूत सहारा बन सकता है। इस खुलासे के बाद वर्टिकल फार्मिंग को मेट्रो सिटी में तेजी से जगह मिल रही है।

यहां हुई सफल
वर्टिकल फार्मिंग को सबसे पहले जगह मिली अमेरिका, चीन, सिंगापुर और मलेशिया में। यहां बहुमंजिला इमारत में बखूबी के साथ प्रयोग किया गया, जिसमें जबर्दस्त सफलता मिली। देश में बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई और दिल्ली में शौकिया तौर पर की गई कोशिश भी सफल रही। अब यह तकनीक छोटे शहरों में विस्तार लेने की कोशिश में है।

मैदान में निजी कंपनियां
मेट्रो सिटी में वर्टिकल फार्मिंग को मिली सफलता के बाद बड़ी कंपनियां इस तकनीक की जानकारी लेकर जरूरी संसाधन की मदद से अब बाजार में प्रवेश कर चुकीं हैं लेकिन इन कंपनियों के प्रोजेक्ट की लागत 2 लाख से लेकर 2 करोड़ तक की है। लिहाजा यह तकनीक इस समय काफी महंगी पड़ रही है।

वर्टिकल फार्मिंग का लाभ
वर्टिकल फार्मिंग में कृत्रिम प्रकाश और कृत्रिम पर्यावरण का निर्माण किया जाता है, इसलिए रासायनिक खाद और कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि प्राकृतिक मौसम के प्रभाव से यह दूर रहता है। जहां खपत हो वहां पर ही इसकी मदद से फसल ली जा सकती है। इस वजह से बाजार तक पहुंचने में खर्च से बचा जा सकता है। कम भूमि याने कम श्रम याने भविष्य का श्रेष्ठ विकल्प है वर्टिकल फार्मिंग।